खुद को ढूंढ़ने का क्या अजीब खेल है यह

जब हम मासूम थे, तब हमे मालूम न था। अब हमे मालूम है, पर अब मासूमियत लापता है।

खुद को ढूंढ़ने का क्या अजीब खेल है यह
That's steelwool rotated at speed giving the illusion of something concrete (ego) there, with Milkyway in the background. 📷 taken by author in Spiti, Himachal Pradesh

प्याज़ की परत-दर-परत छीलते जाओ
पर क्या पाने के लिए ?
क्या हासिल करने के लिए?
क्या आंसू बहाने के लिए?

बस, यह जानने के लिए की अंदर कुछ नहीं है।
अंदर खालीपन है बस।

वाह कन्हैया वाह!
क्या लीला रची है!
क्या अनूठा खेल है!

ताज्जुब की बात तो ये है कि
जब हमारी परते नहीं जमी थीं,
जब हम मासूम थे,
तब हमे मालूम न था।

अब हमे मालूम है,
पर अब मासूमियत लापता है।

बस परते जमीं पड़ी हैं दिखावे की ।